कमोडिटी आउटलुकः तेल-तिलहन की बदलेगी चाल
खाने के तेल और तिलहन में इस साल के शुरुआत से ही दबाव कायम है। मंडियों
में सोयाबीन 3 साल के निचले स्तर पर है, तो सरसों भी सरकार के तय न्यूनतम
समर्थन मूल्य से काफी नीचे है। तिलहन की कीमतों में गिरावट का असर खाने के
तेलों पर भी पड़ा है। सोया और पाम तेल 4 महीने के निचले स्तर पर हैं।
पैदावार के अलावा पूरे तेल और तिलहन के कारोबार पर असर डालने वाला रुपया
डॉलर के मुकाबले करीब 16 महीने का ऊपरी स्तर छू चुका है। ऐसे में ये सवाल
सबके जेहन में है कि आगे कैसी रहेगी तिलहन की चाल और खाने के तेलों का कैसा
रहेगा कारोबार।
पिछले साल के मुकाबले सोयाबीन करीब 30 फीसदी नीचे है, जबकि राजस्थान की
मंडियों में सरसों एमएसपी के नीचे है। देश में इस साल 3.36 करोड़ टन तिलहन
पैदावार होने का अनुमान है। वहीं रुपये में मजबूती से ऑयल मील एक्सपर्ट
मुश्किल में आ गए हैं। इसके साथ ही भारत समेत पूरी दुनिया में रिकॉर्ड
पैदावार से सोयाबीन पर दबाव बना है। खाने के तेलों के इंपोर्ट से तिलहन की
मांग कम है। भारत में करीब 1.4 करोड़ टन सोयाबीन के पैदावार का अनुमान है।
सरसों की नई फसल की आवक मंडियों में शुरू हो गई है।इस साल करीब 80 लाख टन सरसों के पैदावार का अनुमान है, जो पिछले साल के
पैदावार से करीब 17 फीसदी ज्यादा है। ज्यादा पैदावान के अनुमान से सरसों
में मंदी आई है।
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